Ajay

Add To collaction

जुस्तजू भाग --- 2



आरूषि का मन आज कुछ ज्यादा ही बैचेन था। यूं तो उसका चैन पिछले 3 वर्ष से गायब था। इससे निजात पाने के लिए उसने ख़ुद को लोगों के ईलाज करने और आगे पढ़ने में डुबो लिया था। बदले में लोगों से सम्मान और अपनापन भी मिला उसे। पर उस बेवफ़ा को ढूंढ न पाने का गम अकेले में उस पर हावी हो ही जाता था और उसकी नींद गायब हो जाती थी।

 आज भी सुबह 3 बजे ही वह उठ गई। वह इस छोटे से गांव में स्थित डिस्पेंसरी में आज अपना आखिरी दिन होने को इसका कारण समझ रही थी। इससे ध्यान हटाने को वह अपने क्वार्टर के दूसरे कमरे में सो रहे अपने बच्चे को देखने चली आई। अपनी जागती रातों और बैचेन यादों से अपने बच्चे को बचाने के लिए उसने मां का अपने बच्चे को उनके पास ही रहने देने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था।  
   
दोनो अपने अकेलेपन और अपनो की बेवफाई के गम में एक दूसरे की रहबर बन गई थी। रेजिडेंट के रुप में मेडिकल कॉलेज में काम करते समय जब इस बुजुर्ग महिला को उसने अकेला बेसहारा पाया तो न केवल उनका ईलाज किया बल्कि उनसे बदले में मिले प्यार को आरूषि ने स्वीकार कर उन्हे अपने साथ ही रख लिया। अब वह उन्हें मां मानकर अपने मम्मी पापा की कमी पूरी कर लेती थी। मां ने भी मम्मी जैसा फर्ज निभाया था। उसकी प्रेगनेंसी से लेकर उसके बच्चे की देखभाल वह अपने ख़ुद के नाती के जैसे ही करती थी।

बच्चे ने जैसे अपनी मां की उपस्थिति पहचान ली थी। वह भी उठ बैठा था और शायद रोने ही वाला था कि तुरंत ही आरूषि ने उसे गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ले आई। शायद भूखा होगा, यह सोचकर आरूषि ने दूध गर्म किया और गोद में लिटाकर पिलाने लगी। बच्चा भी अपनी मां की गोद में आकर और दूध पीकर उससे लगकर वापस सो गया। सर्दी बहुत थी पर अब भी वह बैचेन ही थी। चार बज गए तो बच्चे को रजाई में दुबकाकर वह नहाने चली गई। हालांकि वह ईश्वर से बेहद नाराज थी पर आज उसके पैर अपने आप मंदिर की ओर ले गए। कई वर्ष बाद आज आरती भी की उसने। शायद यह दिन उसका भाग्य बदलने वाला था।

समय काटे नहीं कट रहा था। वह रसोई में आकर खाना बनाने लगी। सुबह के साढ़े छह बज चुके थे। तभी उसके क्वार्टर का दरवाजा खटखटाया उसे कुछ लोगों की आवाजे भी सुनाई दी जो शायद किसी मरीज को लाए थे। उसने दरवाजा खोला।

"डॉक्टर साहिबा, नाले में एक बस और कार गिर गई है। ये तीन लोग बहुत घायल है। कलेक्टर साहब ने इन्हें आपके पास भिजवाया है।"  उसके कंपाउंडर ने कहा।

"जाओ डिस्पेंसरी खोलो और जितने भी स्टॉफ को बुला सकते हो, बुलाओ। तब तक मैं देखती हूं।" वह तुरंत अंदर जाकर मां को जगाकर और ख़ुद को तैयार कर डिस्पेंसरी की ओर चल दी।
हल्का हल्का उजाला सा था सुबह का।

"डॉक्टर साहिबा, घायल उस कार में है।" बोलने वाला  शायद उस गाड़ी को लाया था। उसके साथ ही कुछ और लोग थे। जो चोटिल थे।

"इन्हें तुरंत इंजेक्शन रूम में ले आओ। आप सब इन घायलों को डिलिवरी थियेटर में शिफ्ट कीजिए।" अब तक डिस्पेंसरी और आस पास कार्यरत नर्सिंग स्टाफ भी मदद को आ गया था। वह सब भूलकर घायलों के ईलाज में जुट गई। साथ ही वह अपने स्टॉफ को भी निर्देश देती जा रही थी। अभी इनका ईलाज कर ही रही थी कि और भी घायल डिस्पेंसरी में लाए जाने लगे।

सारा मेडिकल स्टॉफ बेहद व्यस्त हो गया पर उन तीन घायलों के ईलाज के पर्याप्त साधन वहां नहीं थे। तभी पंचायत की सरपंच वहां आई।

"देखिए, यहां इन सबको लिटाने के लिए जगह कम है और डिस्पेंसरी में पूरी दवाइयां भी नहीं है। स्टीचेज और पट्टियां भी कम पड़ेंगी।" वह ईलाज करते हुए ही बोली।

 "आप कोशिश जारी रखिए मैं बाकी इंतजाम करने की कोशिश करता हूं।" यह किसी पुरुष की आवाज़ थी जिसे वह पहचान गई और तुरंत पीछे मुड़ी। पर वह भी लौटने को मुड़ चुका था। पूरा गीला, कपड़ों से पानी टपक रहा था।

 पर अभी उसके पास उसे रोकने का समय नहीं था। वह जान गई थी कि आज के दिन उसकी कठिन परीक्षा थी, पेशे और जिंदगी दोनों की।
अभी के लिए उसने लोगों का ईलाज करना सही लगा।
  
"डॉक्टर सौम्या को भी बुला लो। वे आज मुझसे चार्ज लेने वाली थी।"

उसे सहयोग की जरूरत थी।

"बॉस, मैं आ गई हूं।"डॉक्टर सौम्या की आवाज़ ने कुछ राहत दी उसे।

"बॉस, इस आदमी को तुरंत ऑपरेशन के लिए भेजना होगा।"

"हां जानती हूं, किसी जिम्मेदार को भेजो।"उसने आवाज़ लगाई।

"मैडम, साहब कोशिश कर रहे हैं। बस कुछ ही देर में आपके लिए और लोग भी आ जायेंगे।" कंधे पर कार्बाइन लटकाए आदमी ने कहा जो वर्दी से पुलिस वाला लग रहा था।

"अपने साहब से बोलिए कि इसे ब्रेन सर्जरी की जरूरत होगी।"
तभी बाहर हंगामा सुनाई देने लगा।

"हम सारे कामचोरों को सीएम साहिब के जौन कहिके सस्पेंड करवा दिहें।" कुर्ता पजामा पहने एक शख़्स जोर जोर से चिल्ला रहा था। "हमाये बबुआ कछु नाही हौन दीजियेगा।"

"आप इन्हे बचाने देंगे हमें ?" आरूषि के रौबदार व्यक्तित्व और साथ में खड़ी सरपंच की धीमे शब्दों में उसके सम्मान में कही गई बात ने उसे ठंडा कर दिया था और वह मिन्नत करने लगा था।

"सरपंच जी, इनका तुरंत ऑपरेशन करके ख़ून रोकना होगा। हमारे पास समय और साधन दोनों ही नहीं है। इन्हें तुरंत ही न्यूरो सर्जन की आवश्यकता है। आप प्रशासन को कहके इंतजाम करवाइए।" वह डिलिवरी थियेटर में ईलाज करते हुए बोली।

"डॉक्टर, आस पास कोई न्यूरो सर्जन नहीं है। और बारिश ने रास्ते खराब कर रखे हैं तो एम्बुलेंस में भेज पाने पर भी 2 घंटे लगेंगे डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल ले जाने में। प्लीज़ आप ही इसे संभालिए फिर आप भी जनरल सर्जन तो है ही।"इलाके के एसडीएम ने उससे अनुरोध किया।"मै पास की दोनों डिस्पेंसरियों और सीएचसी से और डॉक्टर ले आया हूं। ये आपकी मदद करेंगे। पर दुर्भाग्य से अभी किसी भी न्यूरो सर्जन का इंतजाम नहीं हो सकता है। इसे बचाना बेहद जरूरी है। यह विधायक साहब का भतीजा है। हमारी सबकी इज्ज़त आपके हाथों में ही है। या तो ऑपरेशन कीजिए या इसे कम से कम 3 घंटे तक जीवित रखने का इंतजाम कीजिए।"

समय बेहद कम था और इलाके के लोग उसे भगवान ही मानते थे। यहां वह पोस्टेड तो 3 वर्ष से थी पर एम एस करने के कारण वह अभी 3 माह से ही ईलाज कर रही थी। आने के बाद किसी भी हालत में उसने किसी की जान नहीं जाने दी थी। शायद उन्ही लोगों ने एसडीएम और कलेक्टर को उसके बारे में बताया था।

"मेडिकल एथिक्स से ऐसा करना संभव नहीं" उसने असमर्थता जताई।

"मैं सारी ज़िम्मेदारी लेता हूं। आप कोशिश करें।" फिर जानी पहचानी आवाज़ कानों में पड़ी। वही गीला शख्स खड़ा था।

 वही !!, जिसे खोजने के लिए उसने क्या क्या जतन नहीं किए थे !! हां लड़ना था उसे, पूछने थे वे कारण जिसने उसका जीना दूभर कर दिया था। पर अभी यह समय नहीं था।

"आपको मेरा कंपाउंडर सब बता देगा।" उसके स्वर में गुस्सा और तिक्तता आ गई थी।आप कोशिश जारी रखिए मैं बाकी इंतजाम करने की कोशिश करता हूं।" यह किसी पुरुष की आवाज़ थी जिसे वह पहचान गई और तुरंत पीछे मुड़ी। पर वह भी लौटने को मुड़ चुका था। पूरा गीला, कपड़ों से पानी टपक रहा था।

 पर अभी उसके पास उसे रोकने का समय नहीं था। वह जान गई थी कि आज के दिन उसकी कठिन परीक्षा थी, पेशे और जिंदगी दोनों की।
अभी के लिए उसने लोगों का ईलाज करना सही लगा।
  
"डॉक्टर सौम्या को भी बुला लो। वे आज मुझसे चार्ज लेने वाली थी।"

उसे सहयोग की जरूरत थी।

"बॉस, मैं आ गई हूं।"डॉक्टर सौम्या की आवाज़ ने कुछ राहत दी उसे।

"बॉस, इस आदमी को तुरंत ऑपरेशन के लिए भेजना होगा।"

"हां जानती हूं, किसी जिम्मेदार को भेजो।"उसने आवाज़ लगाई।

"मैडम, साहब कोशिश कर रहे हैं। बस कुछ ही देर में आपके लिए और लोग भी आ जायेंगे।" कंधे पर कार्बाइन लटकाए आदमी ने कहा जो वर्दी से पुलिस वाला लग रहा था।

"अपने साहब से बोलिए कि इसे ब्रेन सर्जरी की जरूरत होगी।"
तभी बाहर हंगामा सुनाई देने लगा।

"हम सारे कामचोरों को सीएम साहिब के जौन कहिके सस्पेंड करवा दिहें।" कुर्ता पजामा पहने एक शख़्स जोर जोर से चिल्ला रहा था। "हमाये बबुआ कछु नाही हौन दीजियेगा।"

"आप इन्हे बचाने देंगे हमें ?" आरूषि के रौबदार व्यक्तित्व और साथ में खड़ी सरपंच की धीमे शब्दों में उसके सम्मान में कही गई बात ने उसे ठंडा कर दिया था और वह मिन्नत करने लगा था।

"सरपंच जी, इनका तुरंत ऑपरेशन करके ख़ून रोकना होगा। हमारे पास समय और साधन दोनों ही नहीं है। इन्हें तुरंत ही न्यूरो सर्जन की आवश्यकता है। आप प्रशासन को कहके इंतजाम करवाइए।" वह डिलिवरी थियेटर में ईलाज करते हुए बोली।

"डॉक्टर, आस पास कोई न्यूरो सर्जन नहीं है। और बारिश ने रास्ते खराब कर रखे हैं तो एम्बुलेंस में भेज पाने पर भी 2 घंटे लगेंगे डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल ले जाने में। प्लीज़ आप ही इसे संभालिए फिर आप भी जनरल सर्जन तो है ही।"इलाके के एसडीएम ने उससे अनुरोध किया।"मै पास की दोनों डिस्पेंसरियों और सीएचसी से और डॉक्टर ले आया हूं। ये आपकी मदद करेंगे। पर दुर्भाग्य से अभी किसी भी न्यूरो सर्जन का इंतजाम नहीं हो सकता है। इसे बचाना बेहद जरूरी है। यह विधायक साहब का भतीजा है। हमारी सबकी इज्ज़त आपके हाथों में ही है। या तो ऑपरेशन कीजिए या इसे कम से कम 3 घंटे तक जीवित रखने का इंतजाम कीजिए।"

समय बेहद कम था और इलाके के लोग उसे भगवान ही मानते थे। यहां वह पोस्टेड तो 3 वर्ष से थी पर एम एस करने के कारण वह अभी 3 माह से ही ईलाज कर रही थी। आने के बाद किसी भी हालत में उसने किसी की जान नहीं जाने दी थी। शायद उन्ही लोगों ने एसडीएम और कलेक्टर को उसके बारे में बताया था।

"मेडिकल एथिक्स से ऐसा करना संभव नहीं" उसने असमर्थता जताई।

"मैं सारी ज़िम्मेदारी लेता हूं। आप कोशिश करें।" फिर जानी पहचानी आवाज़ कानों में पड़ी। वही गीला शख्स खड़ा था।

 वही !!, जिसे खोजने के लिए उसने क्या क्या जतन नहीं किए थे !! हां लड़ना था उसे, पूछने थे वे कारण जिसने उसका जीना दूभर कर दिया था। पर अभी यह समय नहीं था।

"आपको मेरा कंपाउंडर सब बता देगा।" उसके स्वर में गुस्सा और तिक्तता आ गई थी।

"हम आप पर भरोसा रखते हैं, आरूषि।" यह आवाज़ अनुपम की थी। हां गाजीपुर कलेक्टर था वो।

"डॉक्टर आरूषि, कलेक्टर साहब।" उसकी कड़वाहट फिर निकली।

अनुपम समझ गया था पर अभी कोई बात करने का समय नहीं था।
आरूषि ने उपलब्ध डॉक्टरों में से सौम्या सहित 2 को साथ लिया बाकी 3 को शेष घायलों के ईलाज के लिए संक्षेप में समझाया। सरपंच से दवाइयों की दुकान खुलवाने और बाकी घायलों के लिए जगह का इंतजाम करने को कहा। एसडीएम से प्राइवेट पॉवर लाइट्स, फ्यूमिगेशन सहित बाकी मेडीकल सुविधाओ तथा पंचायत में चल रही प्राईवेट एक्स रे की दुकान खुलवाने का इंतजाम करने को कहा।

"जगह और समय दोनो ही हम सबकी परीक्षा लेने पर उतारू हैं, मैं आपके भतीजे को बचाने में अपनी सारी पढ़ाई और अनुभव झौंक दूंगी। इस फॉर्म पर साइन कीजिए और किसी न्यूरो सर्जन से बात करवाने का इंतज़ाम करवाइए।"

" जैसन तुम कहोगी बिटिया हम करवाय दिहैन पर याकौ बचाय लैओ बिटिया...!! जै मोड़ा हमाए भाई की निशानी है। हम उपर जाय के वाय का जवाब दिहै। जाकी महतारी बेमौत मर जिहे।" वह रो रहा था।

थोड़ी देर में सारा इंतज़ाम हो गया। कुछ देर में ही बेहद अनुभवी न्यूरो सर्जन उसके मोबाईल पर थे। उसने सारी बात उन्हें समझाई। एक्सरे रिपोर्ट भी विस्तार से बताई।

"5 घंटे हो चुके हैं, डॉक्टर आरूषि। अब ऑपरेशन करना बेहद जरूरी है।" यह कहकर उन्होंने पूरी टीम को गाइड किया, "ऑपरेशन आपको ही करना होगा डॉक्टर आरूषि बाकी कोई सर्जन नहीं है। डॉक्टर चंद्र प्रकाश आप एनेस्थेटिस्ट है तो आपकी ज़िम्मेदारी भी उतनी ही बढ़ गई है जितनी डॉक्टर आरूषि की। डॉक्टर सौम्या आप इनकी पूरी मदद करेंगी। मैं और मेरे दूसरे साथी एनेस्थेटिस्ट फ़ोन पर आपकी मदद और गाइड करेंगे।"

 11 बजे जो सर्जरी शुरु हुई कब चार बज गए सारी टीम को पता ही नहीं चला। अब सब ईश्वर के भरोसे था। पर टीम को अब भी आराम नसीब नहीं था बाकी दोनों घायलों की भी सर्जरी की गई और 6 बज गए।

 सारे थककर चूर थे और आरूषि!!! सचमुच आज तो परीक्षा ही ली थी ईश्वर ने उसकी।

 उधर अनुपम !! ज़िम्मेदारी और मेहनत उसकी भी कम नहीं थी । ऑपरेशन पूरा होने तक उसने ब्रेन सर्जरी हुए पेशेंट को वाराणसी मेडिकल कॉलेज और बाकी दोनों को गाजीपुर भिजवाने की व्यवस्था करवा दी। अपने उच्चाधिकारी को इस लगन से काम करते देखकर एसडीएम और बाकी प्रशासनिक अमला भी लगातार जुटा रहा। एसडीएम ने किसी तरह समझाकर अनुपम और उसके साथ के स्टॉफ के गीले कपड़े बदलवा दिए थे और गांव वालों ने उनकी दैनिक चर्या की व्यवस्था।

"मैडम आप और आपकी बाकी टीम अब कुछ देर आराम लीजिए। हम संभालते हैं।" एसडीएम ने बाकी डॉक्टरों को पेशेंट संभालने की ज़िम्मेदारी दे दी थी।

 अनुपम को सूचना मिल चुकी थी। वह आरूषि के पास आ गया।

"आपका काम हो गया न, अब मुझसे क्या चाहते हैं ? वह अभी भी बाकी घायलों को संभाल रही थी। अनुपम ने बिना कुछ बोले उसका हाथ पकड़ा और उसके क्वार्टर की तरफ़ ले गया।

"छोड़िए मेरा हाथ, आपकी हिम्मत कैसे हुई पकड़ने की ?" उसने विरोध किया पर थकान और लोगों की नजरों ने जैसे कमजोर कर  दिया था उसे। वह उसके पीछे चल दी थी।

"बेटा आ गई तुम !!" मां ने दरवाजा खोलते ही चिंता भरे स्वर में पूछा। "तब से यह साहब लगातार घर की देखभाल करवा रहे थे।"

"इन्हें कब से चिंता होने लगी!! बीच मझधार में ही छोड़ देने की आदत है इनकी। सब ढोंग है।" अब उसका गुस्सा और इतने दिनों की कड़वाहट बाहर आने लगी थी।
"मैं समझी नहीं!! फिर पहले कब इन्होंने तुम्हें छोड़ा ?? कब से जानते हैं एक दूसरे को??" असमझ सी मां बोली।

"हैं कौन ये हमारे, जो आपको कुछ बताऊं!!"फिर से आरूषि बोली "इन्हें कहिए लौट जाएं अपनो के पास।"

"बिटिया इन्होंने कुछ भी खाया पिया नहीं है तबसे। लोग बता रहे थे। फिर मेहमान तो हैं ही ये हमारे। मैने खाना भी बना लिया है। कम से कम इन्हें खिला तो देने दे।"

"हां कीजिए आवभगत पर मुझे बक्श दीजिए।" कहकर आरूषि अपने कमरे में चली गई।

"आप बैठिए, यह कभी किसी से इस तरह नहीं बोलती पर शायद आज थकान और मानसिक तनाव के कारण यह सब हो रहा है। मैं तब तक रसोई की व्यवस्था करती हूं।"

तभी बच्चा भी वहीं आ गया। "नैनीजी ये तौन हैं?" तुतलाते स्वर में उसने पूछा।

"पहले आप बताएं, आप कौन हैं?"अनुपम ने उसे गोद में उठा लिया। उसे नहीं पता था कि उस बच्चे से क्या रिश्ता था उसका। पर उसका मन किया और गोद में ले लिया उसने।





 

   23
12 Comments

Shaqeel

24-Dec-2021 02:28 PM

Good

Reply

Ajay

29-Dec-2021 07:09 PM

Thanks

Reply

Milind salve

09-Dec-2021 08:23 PM

Good

Reply

Ajay

09-Dec-2021 08:30 PM

Thanks

Reply

Swati chourasia

07-Dec-2021 11:22 AM

Bohot hi aacha likha hai aapne 👌👌

Reply

Ajay

07-Dec-2021 09:10 PM

आपको शुक्रिया। इसी तरह रचनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया मिलती रहे।🙏🏻

Reply